samanvay
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पिता के प्रयाण से यह मन छुब्द्ध है !
स्नेह की अविरल धारा अब अवरुद्ध है!!
संताप के इस समर मे नही कोई साथी?
सत्य का यह प्रष्ठ कितना अछरशः शुद्ध है!! पिता के प्रयाण ….
सिस्कियों से सम्पूर्ण धरा गुंजित हो रही है,
कहीं काग की काँव–काँव तो कहीं गिद्ध है!! पिता के प्रयाण…
कभी–कभी लगता है किसी आहट पर यही,
अभी पुकारेंगे मुझे या शायद अभी क्रुद्ध हैं!! पिता के प्रयाण ….
जीवन–मृत्यु का यह क्रम अवश्य्म्भावी है!
सिद्धार्थ से जन्मा ’बोधिसत्व’कितना प्रबुद्ध है!! पिता के प्रयाण…
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