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अपनी- अपनी

samanvay
samanvay
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अपनी-अपनी कुर्सी से चिपके रहो प्यारे,

जिनका मर गया ज़मीर,उन्हे कौन मारे!!

 जनता तो मरने को है,कभी आतंक वाद,

कभी मँहगाई और कभी प्रशासन के मारे!! अपनी- अपनी कुर्सी……..

पाँच साल के लिये, मिल गई जो कुर्सी,

चाह कर भी फ़िर ,कौन गद्दी से उन्हे उतारे!! अपनी- अपनी कुर्सी……..

जनता को बेलने पड रहे हैं कितने पापड?

बेटे की फ़ीस,ट्यूशन,रसोई कर रहे हैं उघारे!! अपनी- अपनी कुर्सी……..

समझ नही आता फ़िर भी कैसे करते हैं?

 लोग पैट्रोल का कुल्ला और दारू के गरारे !! अपनी- अपनी कुर्सी……..

हाँ बेशक उनके घर पर चूल्हा ना जले,

उनकी ज़िन्दगी तो बस, मौज़-मस्ती है प्यारे!! अपनी- अपनी कुर्सी……..

बीबी झिक-झिक करती, तेल ७०रू०किलोहै,

पकौडी कैसे बनाऊ,सब्ज़ी झौकने से भी हारे !! अपनी- अपनी कुर्सी……..

बच्चो को खाना खिलाये या पढा्यें-लिखायें,

मध्यम वर्गीय परिवारो को नज़र आ गये तारे!!अपनी- अपनी कुर्सी……..

chairबोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७

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