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कैंसर दिवस पर चिन्तन का विषय यह है कि इस बीमारी की भयावह्ता केवल एक दिन सरकार को क्यों दिखती है? सरकार तम्बाकू और सिग्रेट से प्राप्त होनी वाली एक्साइज़ की आय से अपने को कब रोक सकेगी ? गाँधी के सपनो का भारत तो नशामुक्त होना था,फ़िर उन्ही की अनुयायी केन्द्र की कांग्रेस शासित सरकार कोई ठोस कदम उनके सपने को पूरा करने का क्यों नही उठाती है? क्या सरकार के पास कोई और साधन या कर उप्लब्ध नही है जो इसकी भरपाई कर सके?जैसे भारत की स्वतंत्रता के ६५ वर्षो के बाद सभी पार्टियों को पता चला कि भ्रष्टाचार देश को दीमक की तरह खा चुका है या घुन की तरह चाट रहा है,तब आधे –अधूरे मन से प्रयास शुरू किये जा रहे है?आज यही स्थिति कैसर रोग की भी हो चुकी है, तम्बाकू और सिग्रेट आज का युवक फ़ैशन परस्ती या स्टेटस सिम्बल की पर्याय मानने लगी है! अत: इस पर पूर्ण प्रतिबन्ध आवश्यकीय हो गया है!
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