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उत्तर प्रदेश का मतदान अन्तिम चरण मे पँहुच गया है ,मतदान का प्रतिशत भी अच्छा रहा !कहते है कि युवा वर्ग ने बढ -चढ कर हिस्सा लिया !चिन्तन का विषय यह है कि क्या हम प्रजातान्त्रिक प्रणाली के लिये सछम हो पाये है? या फ़िर अभी उतने ही अयोग्य है जितने आज से ६५ वर्ष पूर्व जब स्वतन्त्रता प्राप्त की थी और संघात्मक प्रजातन्त्र की स्थापना हुई थी ! मेरे विचार से हाँ हम आज भी अपने मानस पटल से राज तन्त्र को नही मिटा पाये है ,जहाँ राजा- शासक वर्ग और प्रजा- शासित वर्ग भेद मे होता है ! दूसरा शासन का दैवी सिधान्त लागू होता है,कि राजा देवता का स्वरूप है उसका विरोध नही किया जा सकता और उसके बाद उसका सबसे बडा पुत्र ही राजा बनने का अधिकारी है! सबसे अन्तिम कि राजा का कथन वह देव वाक्य है जो सर्व मान्य होता है!
आज हम देखते है कि सभी दलो मे लगभग ऐसी ही व्यवस्था है ! कांग्रेस मे नेहरू-गाँधी परिवार के अलावा कोई शासन करने के योग्य होता ही नही है ! वरिष्टतम नेता मन्त्री भी यह कहने मे संकोच नही करते कि “राहुल जी चाहें तो अर्ध रात्रि मे प्रधान मंत्री बन सकते है ! सता मे बेशक कोई प्रधान मंत्री बनाकर बैठा दिया जाये परन्तु उसका रिमोट १० जनपथ मे ही रहता है!”और चिरन्तन काल से उस परिवार को ही राजा बनने का अधिकार प्राप्त है !
एक दल अपने को समाजवादी पार्टी (सपा) कहता है,जहाँ मुलायम सिंह और उनके पुत्र के अलावा शासन करने के लिये कोई योग्य नही है,बेशक उनके भाई राम गोपाल यादव व शिव पाल सिंह यादव, अखिलेश यादव से अधिक राज्नैतिक अनुभव और परिपक्वता रखते हों !
तीसरे को लीजिये वह दल उत्तर प्रदेश मे पूर्ण बहुमत से विजयी होकर ५ वर्षों तक सता भोग चुका है,यानी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ! वहाँ बहन मायावतीजी के अलावा कोई भी किसी कद का बडे से बडा नेता हो ,तभी तक पार्टी मे रह सकता है जब तक उनके अनुकम्पा है वर्ना चुनाव से एक पख्वाडे पहले उनके अन्दर की देवी जाग्रत हो १४ मत्रियों को भ्रष्ट कर बाहर का रास्ता दिखा सकती है! सम्भवतः उनके साथ ही यह दल भी समाप्त हो जावेगा !
यही हाल अपना दल ,समानता दल का है ! महाराष्ट्र मे शिव सेना हो बाला सहब ठाकरे के बाद सत्ता की बाग डोर सभालने के लिये भतीजे राज ठाकरे को हटा कर उन्के पुत्र उद्धव को लाना पडा या तमिलनाडु मे द्रविण मुनेत्र कड्गम या जया ललिता ! हाँ अपवाद के रूप मे भारतीय जनता पार्टी और जनता दल अवश्य है जहाँ प्रजातन्त्र पार्टी के भीतर न हो लकिन निर्णय संग्ठन समिति के द्वारा ही तय होते है,बेशक विरोधों मे घिरी रहती है क्योंकि प्रजातन्त्र का अर्थ ही सब को अपनी बात कहने का हक है ! शायद आप इस मत से सहमत होगे कि जो दल अपने स्वयं के अन्दर प्रजातन्त्र स्थापित करने मे डरते हैं ,वह देश मे उसकी कल्पना कैसे कर सकते है? आज भष्टाचार अपने चरम पर है क्योंकि भाई -भतीजावाद ही भ्र्ष्टाचार की जननी है ! आज ५ वर्षो मे राजनैतिक मठाधीशो या धर्माचार्यों की सम्पत्ति ५ वर्षो मे ५० से ५०० गुनी हो जाती है और गरीब सर्वहारा वर्ग दलित की बेटी के ५ वर्षो के शासन के बाद भे खुले मे शौच को जता है उनकी बस्ती के लिय कोई सामुदायिक भवन नही है कि वह अपने बाल-बच्चों के मुन्डन,विवाह आदि जैसे संस्कार ही निःशुल्क अथवा कम पैसे खर्च कर करवा सके! प्राथमिक स्वस्थ केन्द्र,प्राथमिक विद्यालय गाँवो मे यत्र-तत्र देखने को मिल जाते है परन्तु डाक्टर या शिछक के बिना व्यर्थ ! बहिन जी और कांसी राम जी अमर होगये अरबों खर्च कर पार्क निर्माण करवाकर! क्या यह सब बाबर,अकबर ,शाह्जहाँ से कम है !लेकिन याद रहे कि वो भी यह साथ नही ले जा सके ! अब आव्शकता है कि उस राजनैतिक दल को सत्ता मिले जो प्रजातन्त्र को दल और देश दोनो मे लागू कर सके तभी राष्ट्र सम्रद्ध होगा वरना विकास दर८% से ६% पर आ चुकी है, आगे भगवान मालिक है!
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २२२००७
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