माँ
माँ
—
मानव का पहला समबोधन “माँ” है!
पीडा का हर उदबोधन “माँ है !!
जिस पर नत मस्तक पराक्रमी सब,
उस अबला का अवलम्बन “माँ”है!!
स्र्ष्टी के हर प्राणी पर अधिकार उसे,
जीवन दात्री का अभिनन्दन “माँ”है!!
प्रतिपल,प्रति छण पूज रहा जिसको,
मानव का निश्चित संवर्धन “माँ” है!
भारतीय संस्क्रति का है यह ह्रास ,
जन्म अधर मे लटका ,वह”माँ” है!!
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
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मानव का पहला समबोधन “माँ” है!
पीडा का हर उदबोधन “माँ है !!
जिस पर नत मस्तक पराक्रमी सब,
उस अबला का अवलम्बन “माँ”है!!
स्र्ष्टी के हर प्राणी पर अधिकार उसे,
जीवन दात्री का अभिनन्दन “माँ”है!!
प्रतिपल,प्रति छण पूज रहा जिसको,
मानव का निश्चित संवर्धन “माँ” है!
भारतीय संस्क्रति का है यह ह्रास ,
जन्म अधर मे लटका ,वह”माँ” है!!
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
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