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संसद

samanvay
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साठ बरस की बूढी संसद ,कितनी अब लाचार हुई !

जैसे बाहिर अब्बा खाँसे,औ भीतर अम्मा बीमार हुई!!

बैठ तिहाड मे जब अफ़ज़ल गुरू,मंद-मंद मुस्काते हैं,

संसद के लम्बे-लम्बे ख्म्बे भी,बौने-बौने हो जाते हैं!!

भ्रष्ट सांसदो के नोट जब संसद मे लहराये  जाते है,

तब द्रौपदी-चीर-हरण के ज़ख्म, पुनःहरे हो जाते हैं!!

धर्म-नि्रपेछ संविधान की दुहाई तब बेमानी लगती है,

जब टिकट-आँवन्टन मे जाति-पाँति की बोली लगती है!!

कहाँ गई संसद जिसमे१५%विधिवेत्ता२२%किसान थे?

अब गुण्डों-हत्यारों को देख ,निरीह जनता हैरान है!!

भूल गये सब समाजवाद और प्रजातंत्र के नारे को,

ढूँढ रहे सब टाटा,अम्बानी और पूँजीवाद के प्यारे को!!

फ़िर संसद की बरसी पर नई डाक टिकट ज़ारी होगी,

साठ बरस मे संसद ने,जनता मँहगाई से मारी होगी !!

बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा२८२००७

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