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मेरे अन्तस की ज्वाला

samanvay
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माँ शारदे को वन्दन, माँ भारती को शत-शत नमन!
यह महाकाव्य नही, अपितु मेरे अन्तस का है क्रन्दन!!
मै कतई नही सूर और तुलसी ,ना ही हूँ मै कालिदास!
छ्मा प्रार्थना कर लिख रहा, धर अन्तस यह विश्व्वास!!
मेरे अन्तस की ज्वाला को, अनुज समझ अपनायेंगे!
भाषा-साहित्य की त्रुटियों को नवाकुँर सोच बिसरायेंगे!!
है बोध नही मुझ ’बोधिसत्व’ को, गलत और सही का!
यह कोई लेखा-जोखा नही, किसी रोकड और बही का!!
“शान्ति” पुत्र मै, “प्रकाश” पुँज की तेजस्वी ज्वाला हूँ!
“कस्तू्रिया” हूँ कस्तूरी सा महकूँ, शायद मतवाला हूँ!!
साहित्य-सॄजन और संस्कृति की, मुझको समझ नही!
मेरी रचनायें पढकर,क्यूँ दुनिया कवि मुझे समझ रही!!
शोषण-उत्पीडन का चिन्तक हूँ, करता रहा यही प्रयास!
कैसे मौन रहूँ,जब मस्तिष्क निरन्तर लगा रहा कयास!!
क्या यह समय नही? प्रजातँत्र को रामायण दर्शन की!
क्या यह समय नही, फ़िर कृष्ण और चक्र सुदर्शन की?
प्रजातंत्र -रख्वाले,कब तक”भारत”को गारत मे ढकेलेगे?
हमने तो सब झेला, क्या आने वाले भी ऐसे ही झेलेंगे?
इन रख्वालों ने ही, सीता को अब तक बदनाम किया!
क्यूँ कृष्कों -मज़दूरो के हित मे, नही कुछ काम किया?
उनके खून-पसीने की कमाई को व्यर्थ गँवाया जाता है!
लाखों डालर खर्च कर,कामन वैल्थ गेम कराया जाता है!
बिजली-पानी,शिछा-चिकित्सा को भी वो आज तरस रहे!
कभी बाढ, कभी सूखा, कभी आस्मान से ओले बरस रहे!!
आखिर अर्थ व्यवस्था मे,उसकी भागीदारी सुनिशिचित हो,
प्राकृतिक आपदा से पीडित,आत्महत्या को न बाधित हो!!
कोठी मे रहने वाले नेता-अभिनेता,महलों तक जा पहुँचे!
पर भाग्य भरोसे बैठा किसान खाद-पानी तक ना पहुँचे!!
यहाँ किसान धरती का सीना चीर, कैसे फ़सल उगा रहा?
वहाँ नेता का बेटा चुनाव मे,दारू-नोटो की गंगा बहा रहा!!
वर्षा का पानी पहले बाँधो मे बाँध,किसानो को बहलाते है!
फ़िर लाखो क्यूसेक पानी छोड,उनकी खडी फ़सल बहाते है!!
खून खौलता है,जब किसान भुख्मरी से आत्मह्त्या करता है!
सांसद केवल संसद मे विशेषाधिकार , प्रश्न उठाया करता है!!
कुछ मुआवज़ा प्रदान कर,फ़िर सोने की तैय्यारी होती है!
और बेबस जनता! स्वतंत्रता के इन पहरेदारों पर रोती है!!
अब प्रजातंत्र प्रजा नही, केवल गुन्डों के डन्डों से चलती है!
कुछ सरकारी कुछ पालतू गुन्डो,की गोदी अस्मत पलती है!!
सत्ता मे भी अब शुचिता और मर्यादा का कोई काम नही !
मात्र धोबी के कहने पर पत्नी त्यागे, ऐसा कोई राम नही!!
अब भारत माँ भी आज़ादी के परवानो की सोच२ रोती है!
तुष्टीकरण,जातिवाद,आरछण से पजातंत्र खोख्ली होती है!!
जब तक भ्रष्टाचार भगाने को,हर घर कृष्ण नही पैदा होगा!
सत्य अहिंसा के चर्खे नही,हर हाथ चक्र-सुदर्शन जैसा होगा!!
तब माँ भारती के मस्तक पर भी,मुकुट कोहिनूर का होगा!
किसान-मज़दूर खुशहाल, वो दिन भारत के गुरूर का होगा!!

बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज,सिकन्दरा,आगरा-२८२००७

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