samanvay
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अब हर श्व्वास,इतनी बदहवास हो गई!
राष्ट्र-भक्ति,देश-द्रोहियो की दास हो गई!!
“अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता”माँ-भारती का,
गले का हार न हुई,वरन फ़ाँस हो गई!!
संविधान के निर्माता शर्मिन्दा हो गये,
१२५वी जयती पर,आत्मा उदास हो गई!!
डा० अम्बेडकर! दूँ तुम्हे क्या श्रद्धांजलि?
बगैर तुम्हारे मर्यादा भी बदहवास हो गई!!
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिक्न्दरा,आगरा-२८२००७
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