samanvay
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अधरों पर ना ना सुनता रहा!
तुम बेफ़िक्र मस्ती करती रही,
मै स्वप्न सलोने बुनता रहा!!
“तुम्हारे लिये जाँन भी दे दूँ”
कहा करती ! मै सुनता रहा!!
आज किसी और की हो गई,
और मै सिर्फ़ सिर धुनता रहा!!
कैसी है पीर ये लबो मे बन्द,
इसकी तीस मे मै घुनता रहा!!
शहनाईयों की आवाज़ मे कैद,
आँसुओं की माला बुनता रहा!!
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज ,सिकन्दरा,आगरा-२८२००७
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